DAV (PG) College, Bulandshahr
(Affiliated to C.C.S. University, Meerut)
Vikas Bharat
Prabhat Kumar

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Prabhat Kumar

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Teacher Speaks

संस्कृत वह भाषा है जिसमें भारत की सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित है, अतः हमें इस भाषा का ज्ञान अवश्य ही होना चाहिए। संस्कृत भाषा की उपेक्षा कर हम अपनी उस सांस्कृतिक विरासत से अलग हो सकते हैं, जिसका प्रत्यक्ष अनुभव हम सभी ने किया है। यदि 'संस्कृत' इस शब्द के अर्थ पर विचार करते हैं तो हमें ज्ञात होता है संस्कृत अर्थात शुद्ध अथवा परिष्कृत। इसे देववाणी भी कहा जाता है। ऐसा सुनकर कई लोग अज्ञानवश इसे सिर्फ पूजा-पाठ व कर्मकांड से ही जुड़ा मान बैठते हैं। इसके चलते इस भाषा को "अवैज्ञानिक" तथा "परलोकवादी" कहकर अनुपयोगी ठहराना सही नहीं है। इस भाषा में निहित सुरक्षित ज्ञान को जाने बिना हम उस चिंतन तक नहीं पहुंच पाते, जो भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। इसे केवल संग्रहालय की वस्तु मानना अथवा ऐतिहासिक वस्तु समझकर इससे आंखें चुराना किसी भी तरह विवेकपूर्ण नहीं कहा जा सकता। संस्कृत को पंथनिरपेक्षता के लिए खतरा मान बैठना और संकीर्ण मानना तथ्य आधारित ना होकर रूढ़िगत धारणा है जो पूर्वाग्रह से ग्रसित है। संस्कृत को खोने का अर्थ है भारत का अतीत खोना, अपनी अस्मिता खोना और अकूत ज्ञान-राशि से हाथ धो बैठना। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भाषा केवल अक्षर और शब्द-भंडार की यांत्रिक व्यवस्था मात्र नहीं होती है। यह अपने साथ सामाजिक मूल्यों को भी संजोये रहती है, जिससे हमें समाज को देखने की एक दृष्टि भी प्राप्त होती है। संस्कृत की विरासत संभाल कर ही भारत भारत रह सकेगा और समकालीन विमर्श में सार्थक उपस्थिति बना सकेगा।